Kitab Zindagi Ki
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9789350723067
"किताब ज़िन्दगी की - कृष्ण कन्हैया की कविताएँ 'स्वयं' से ऊपर होकर, निजी दुःख-सुख से ऊपर उठकर सामाजिक और मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत हैं जो किसी कविता के 'अमर' होने के प्राथमिक लक्षण हैं। किसी ने कहा है- ज़िन्दगी की बात क्या है ज़िन्दगी है ज़िन्दगी, खिल गयी तो सुबह है, ढल गयी तो शाम है। कृष्ण कन्हैया ने अपनी पुस्तक किताब ज़िन्दगी की में कई तरह से ज़िन्दगी का विश्लेषण किया है। ज़िन्दगी बचपन से प्रारम्भ होती है और इसके क्षण बड़े सुखदायक होते हैं। इसमें न भेद-भाव, न चिन्ता, न लोभ । बस प्यार ही प्यार है, आनन्द ही आनन्द है कवि ने अपने आनन्दपूर्ण क्षणों का वर्णन करते हुए ईश्वर से प्रार्थना की है— मुझको मेरा बचपन दे दे, मन को वही लड़कपन दे दे। इस कविता में वात्सल्य है, माँ का मनुहार है, अबोध मन की परिभाषा है जिसमें कहा गया है कि बालापन का धन अद्भुत है । कवि अपने तमाम भौतिक सुखों का त्याग करना चाहता है और कहता है - सारा धन-संसार तू ले ले पर बचपन के सुख वे दे दे। ज़िन्दगी जब आगे बढ़ती है तो बचपन बीत जाने पर कवि को महसूस होता है - ज़िन्दगी एक दौड़ है, बैसाखी पर चलने की लाचारी नहीं ।
- इसी पुस्तक से
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