Lambi Kahani Aur Samkalin Paridrishya
लम्बी कहानी और समकालीन परिदृश्य -
लम्बी कहानी और समकालीन परिदृश्य पर केन्द्रित यह अध्ययन लम्बी कहानी और समकालीन समय का बिम्ब प्रतिबिम्बात्मक परिचय है। सन् 1980 के बाद का समय लम्बी कहानी की पहचान और प्रतिष्ठा का समय है। दुर्दम्य जिजीविषा से प्रेरित रचनाधर्मिता ने लम्बी कहानी के रूप में एक ही लहर में सब कुछ बहा लेने का हौसला दिखाकर कथा-जगत् में नये युग का सूत्रपात किया। यह ऐसा दौर था जब भूमण्डलीकरण, सूचना-क्रान्ति, बाज़ारवाद के तूफ़ानी आवेग आम और विशिष्ट को भौचक्का कर रहे थे और रचनाकार की मेधा को उद्वेलित आलोड़ित। इस ऊहापोह ग्रस्त मानसिकता में क्या चुनें? कैसे चुनें? और क्यों चुने? के प्रश्न क्या छोड़े? और कैसे छोड़े की दुविधा में बदल गये। समाधान में साहित्य विधाता की क़लम वामनरूपी विस्तार लेकर सब कुछ को एक ही वितान में समोने में जुट गयी। समकालीन जीवन की आर्थिक विसंगतियाँ, बाज़ारवाद, ग़रीबी, बेरोज़गारी, महानगरीय जीवन की ऊब, कुण्ठा, सन्त्रास, टूटते-विखरते रिश्ते, अकेलापन, सूचना क्रान्ति का मयावी रूप और विस्तार, कुत्सित राजनीतिक ध्रुवीकरण, साम्प्रदायिकता जैसे कितने ही पक्ष उसमें एक साथ चित्रित होने लगे।
प्रस्तुत पुस्तक कहानी की इस अभिनव उड़ान पर तीसरी नज़र डालने का आरम्भिक प्रयास है।