Mardrar Ki Maan

As low as ₹199.00
In stock
Only %1 left
SKU
9788181437440
"मेरे बेटे के हाथ में छुरा थमाया भवानी बाबू ने ! ये लोग मर गये! तपन भी मर जायेगा। लेकिन वे लोग और-और मर्डरर ले आयेंगे। जो ख़ून करता है, वह ज़रूर मुजरिम है। मेरे बेटे ने आज जो ख़ून किया, वह खरीद-फरोख्त की मंडी में, एक लड़की को वेश्या - जीवन से बचाने के लिए किया। इस टाउन में, चिरकाल मैं सिर झुकाये जीती रही। लेकिन आज के लिए मुझे कोई लज्जा, कोई शर्मिन्दगी नहीं है। लेकिन दारोगा बाबू, जो लोग मर्डर कराते हैं, वे लोग तो खुले ही छूट गये। आज़ाद ही रहे ! यह कैसा फ़ैसला है? तपन क्या अकेला ही मर्डरर है? भवानी बाबू क्या हैं? 'आप जाइये - ' 'कोई जवाब है?' तपन की माँ की सूखी-सूखी आँखों में, सूखा-सूखा हाहाकार! 'भवानी बाबू जैसे लोग भी तो मर्डरर हैं, लेकिन उन लोगों को कोई नहीं पकड़ेगा; कोई गिरफ्तार नहीं करेगा ।' समवेत जनता में खुसफुस शुरू हो गयी। अभीक ने पूछा, 'आप जा रही हैं?"" 'हाँ, उसे तो घर पर ही लायेंगे, मैं चलूँ ।' राधा आगे बढ़ आयी । बीरू, कुश और क्षिति उनके साथ-साथ चल पड़े। तपन की माँ सिर ऊँचा किये आगे बढ़ गयी । दारोगा साहब देखते रहे, एक अदद मर्डरर की मौत पर क्रुद्ध, अवाक् जनता का चेहरा! दारोगा साहब देखते रहे, मर्डरर की माँ शान से सिर ऊँचा किये, आगे बढ़ती जा रही थी।"

Reviews

Write Your Own Review
You're reviewing:Mardrar Ki Maan
Your Rating
Copyright © 2025 Vani Prakashan Books. All Rights Reserved.

Design & Developed by: https://octagontechs.com/