Meri Nazar Mein Mera Chand
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"रवीन्द्र चसवाल ‘रफ़ीक़’ साहब ने उर्दू शायरी में अपने जदीद लहजे, ज़बान के रखरखाव और तख़लीक़ी सलाहियतों से पासबान ए अदब में बहुत जल्द अपना मेयार बनाया है आपका शेरी मजमुआ मेरी नज़र में मेरा चाँद पढ़कर मुझे कहीं-कहीं रिवायती शायरी की झलक तो मिलती रही मगर इसके साथ-साथ मौजूदा मसाइल, रोज़मर्रा की ज़रूरतों और ज़िन्दगी के उतार-चढ़ाव के छोटे-छोटे मंज़र भी कभी अठखेलियाँ खाते और कभी सिसकते नज़र आये।
नाकामियों के ख़ौफ़ ने बढ़ने नहीं दिया
माज़ी ने मुझको आज से मिलने नहीं दिया
रवीन्द्र ‘रफ़ीक़’ साहब ने अपनी तख़्लीक़ी सलाहियतों से एक नयी दुनिया के इमकानात की ख़बर दी, ज़बान की हदों को अपनी शायरी के ज़रिये फैलाव बख़्शा और अपने आसपास के अल्फ़ाज़ को जमा करके नये-नये मानी पैदा किये। ये आपकी शायरी का एक बड़ा कारनामा है जो बड़ी रियाज़त के बाद किसी लिखने वाले को हासिल होता है।
—पंछी जालौनवी, प्रसिद्ध गीतकार एवं ग़ज़लकार, मुम्बई
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