Mujhe Hi Hona Hai Bar-Bar
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"जया जादवानी के कहानी-संग्रह ‘मुझे ही होना है बार-बार’ की कहानियों को नारी-केन्द्रित कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। दरअसल इन कहानियों में लेखिका ने अपने समय, समाज, संस्कृति में नारी की भूमिका को जाँचने की कोशिश की है। इस कोशिश में विराट मनुष्य जीवन की परख भी उन्होंने की है और कहीं भी उसकी समस्याओं, उसके संघर्षों को ओझल नहीं किया है।
कई धरातलों पर मनुष्य के निजी और अन्तरंग अनुभव इनमें व्यक्त हुए हैं। यह अनुभव जीवन-यथार्थ के ही महत्त्वपूर्ण हिस्से हैं। इनसे कतराना सच से पलायन करना है या कहें यथार्थ के एक अहम पक्ष को अनदेखा करना है। इन कहानियों में यथार्थ वर्णन कल्पना से अधिक आकर्षक है।
'शाम की धूप' जो कि अपेक्षाकृत लम्बी कहानी है, स्वयं में औपन्यासिक कैनवॅस लिए है। शेष कहानियाँ आकारपरक लघुता या सामान्यता के बावजूद अपने कथ्य को पूरी तरह से कहने में सफल हुई हैं। वास्तविक घटनाएँ और आसपास के पात्र हैं। उनका आचरण और कार्य-व्यापार तक जाने-पहचाने हैं लेकिन इसमें अक्सर अजाने रह जाने वाले तथ्य उजागर हुए हैं। और उन्हें पहचानते हुए हमें लगता है यह सब वास्तविक जीवन में ही सम्भव है।
इन कहानियों में मनुष्य-मन की जटिल गुत्थियों को खोलने का उपक्रम करते हुए कहीं भी कहानियों में उलझाव नहीं आता बल्कि अनावश्यक कल्पनालोक में जाये बिना कहानियाँ अपने तात्पर्य को अभिव्यक्त कर लेती हैं। यहाँ सपनों और फंतासियों का भी उपयोग किया है। प्रत्यक्ष भाषा में संयोजित नाटकीय संवाद ‘मुझे ही होना है बार-बार’ की कहानियों की विशेषता है।
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