Mumtaz Mahal
मुमताज़ महल -
सात आश्चर्यों में एक ताजमहल दुनिया भर के आकर्षण का केन्द्र है। तब तो उसके निर्माण की प्रेरणास्रोत मुगल साम्राज्ञी मुमताज़ महल का चरित्र भी कम आकर्षक नहीं रहा होगा। दुर्लभ गुणों से संवलित व्यक्तित्व के सम्मोहन से उसने अपने पति शाहजादा खुर्रम को हरम की देहलीज़ से बाँध रखा था। उसने अपनी सेवा और सूझबूझ सौजन्य और समर्पण, साहस और संकल्प के द्वारा यह प्रमाणित किया कि पुरुष के लिए स्त्री से बढ़कर कोई औषधि नहीं है। उसने अपने पति को सफलता की वह राह दिखाई, जिस पर चलकर वह सम्राट शाहजहाँ के नाम से मुगल सल्तनत के सिंहासन पर आसीन हुआ।
ताजमहल जैसी अजीमुशान इमारत हर किसी स्त्री के लिए नहीं बनती। वह उसी के लिए बनती है, जो इसे डिज़र्व करती है। और मुमताज़ इसी कोटि की नारी थी। दुर्लभ गुणों से सुसज्जित उसके व्यक्तित्व के विषय में यह टिप्पणी बहुत मौजूँ होगी कि ज़रूर उसका मायका बिहिश्त जैसा रहा होगा, जहाँ उसकी तर्बियत हुई और उसकी शख़्सियत में अज्मत और अहम्मीयत वारिद हुई। उसमें जाने कितनी सिफ़तों और अच्छाइयों ने पनाह ली!! उसकी बातचीत का अनोखा गुलरेज़ अनदाज़! उसकी मिठास-भरी साफ़गोई और मिज़ाज की वह अनोखी सादगी। वह हर शख़्स जो उससे जुड़ा है उसकी फ़िक्र फिरदौस की जुही-सी हमेशा बनी रहने वाली मसीही मुस्कान और ठंड की सुबह की खिली धूप-सा दमकता चेहरा किसी एक औरत में कुदरत का इतना अकूत सरमाया!! आने वाली पीढ़ियों शायद ही यक़ीन कर पायेंगी कि इन गुणों से आरास्ता, मोम की सजीव गुड़िया सी कोई एक बदीउज़्ज़मा खानम हिन्दुस्तान की सरज़मीं पर जल्वानशीं रही होगी और मुमताज़ बिल्कुल ऐसी ही थी।
इतिहास उसके विषय में कृपण रहा है। उसके लिए उसके पास चन्द संतरें ही हैं। इतिहास की इस नाइन्साफ़ी के बरअक्स साहित्य को आगे आना पड़ा। प्रस्तुत उपन्यास में मुमताज़ को इतिहास के सुनहरे पन्ने में उस जगह बिठाने की कोशिश की गयी है, जिसकी कि वह वाकई हक़दार थी।