Publisher:
Vani Prakashan

Nakkash

In stock
Only %1 left
SKU
9789357754965
Rating:
0%
As low as ₹495.00

देश की राजधानी दिल्ली में अरावली की पहाड़ियों के बीच एक अकादमिक द्वीप, यानी जेएनयू । यहाँ का विद्यार्थी अभिमन्यु साहित्य के साथ समाज और राजनीति का अनुसन्धान कर रहा है। क्रान्ति के गीत गाती एक प्यारी-सी लड़की के साथ इक्कीसवीं सदी में आते-आते ही थक गये पूँजीवाद पर जोशीला विमर्श करता है। ग़ालिब, भगत सिंह, अम्बेडकर की बहसों के बीच से क़िस्मत की तेज़ लहरें उसे जेएनयू के द्वीप से उठाकर संघर्ष की मुख्यधारा की ज़मीन पर पटक जाती हैं। जेएनयू की अकादमिक विरासत और दिल्ली पुलिस का बिल्ला दोनों कन्धे पर एक साथ नहीं रह सकते थे। जेएनयू से जुदा होने के बाद फिर एक बार उसकी ज़िन्दगी में जेएनयू आता है। किसान आन्दोलन, दिल्ली की राजनीति के बीच पैदा होती है एक ऐसी अकादमिक अपराध कथा जो अभिमन्यु की तासीर की तस्दीक़ करती है।

अच्छा पढ़ने का सुख, जीवन के कई सुखों में से एक था। इसी सुख से एक ललक पैदा हुई लिखने की। इसी ललक ने पैदा किया अभिमन्यु को। इसके बाद चिन्ता हुई कि भविष्य क्या होगा इस किरदार का? क्या इसे पढ़ना पाठकों के लिए सुखकर होगा? पाठक पचहत्तर पेज पढ़ने के बाद क्या एक बार आख़िरी पृष्ठ-संख्या देखकर सोचेगा कि इसे पूरा पढ़ ही लूँ, तब अपनी कॉफ़ी बनाने जाऊँ? क्या अदरकवाली चाय की गन्ध के साथ दिमाग़ पर अभिमन्यु की गन्ध भी तारी होगी? किताब बन्द करने के बाद भी क्या पाठकों के दिलो-दिमाग़ पर उसका क़िस्सा खुला रहेगा? क्या पाठक शाब्दिक अभिमन्यु के हिसाब से कोई रंग-रूप भी देने लगेंगे? दो उपन्यास के बाद इन सबका जवाब 'हाँ' में मिल रहा है। अन्दाज़ा नहीं था कि अभिमन्यु को पाठकों का इतना बड़ा परिवार और प्यार मिलेगा। इस प्यार के सदक़े अब अभिमन्यु मेरा नहीं आपका किरदार है।

-मुकेश भारद्वाज

ISBN
9789357754965
Publisher:
Vani Prakashan

More Information

More Information
Publication Vani Prakashan

Reviews

Write Your Own Review
You're reviewing:Nakkash
Your Rating
Copyright © 2025 Vani Prakashan Books. All Rights Reserved.

Design & Developed by: https://octagontechs.com/