Natyadarshan

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नाट्यदर्शन - 
पिछले लगभग पाँच दशकों में जिन रंगनिर्देशकों ने भारतीय रंगमंच पर अपनी गहरी छाप छोड़ी है, उनमें कावालम नारायण पणिक्कर, हबीब तनवीर और रतन थियम प्रमुख हैं। इन रंगनिर्देशकों ने रंगव्यवहार और रंगविचार दोनों में ही अपना योगदान किया है। पारम्परिक रंगदृष्टि से इन तीनों महान निर्देशकों ने अपनी तरह से सम्बन्ध बनाकर समकालीन रंगव्यवहार को नया आधार और नयी दिशा प्रदान की है। संगीता गुन्देचा वर्षों तक इन विभूतियों से रंगमंच, कला और जीवन सम्बन्धी विषयों पर गहन संवाद करती रही हैं। वे इन रंगनिर्देशकों के नाटकों की उत्सुक दर्शक और सक्षम समीक्षक भी रही हैं। स्वयं नाट्यशास्त्र की विशेषज्ञ होने के कारण संगीता इन रंगनिर्देशकों के विचारों को उस ओर ले जाने में सफल रही हैं, जिसे हम चाहे तो हमारे समय का नाट्यदर्शन कह सकते हैं। दूसरे शब्दों में ये संवाद समकालीन भारत के सम्भावित नाट्यशास्त्र की पीठिका हैं। इनमें रंगकर्म के दार्शनिक आधार बनते दिखाई देते हैं और साथ ही रंगव्यवहार की भी नयी राहें खुलती हुई अनुभव होती हैं। इस दृष्टि से ये संवाद न केवल रंगकर्म के सिद्धान्तकारों के लिए महत्व के हैं बल्कि इनमें छुपी रंगव्यवहार की नयी सम्भावनाएँ युवा रंगनिर्देशकों, अभिनेताओं, दर्शकों और अन्य रंगकर्मियों के लिए भी अर्थपूर्ण सिद्ध होंगी।

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