O Eja
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"ओ इजा -
‘ओ इजा' युवा लेखक शम्भूदत्त सती का पहला उपन्यास है। इस उपन्यास में एक पहाड़ी गाँव— झंडीधार—का अंकन है जिसकी उपस्थिति उतनी ही सच है जितनी अनुपस्थिति। लेखक ने इस बारे में लिखा है : ""इस कहानी को लिखने के बाद आज तक दुबारा झंडीधार गया ही नहीं, जाता भी तब ना, जब कहीं होता!"" आज के तथाकथित उत्तर-आधुनिक दौर ने ऐसे अनेक गाँव, वहाँ के जीवन, लोक संस्कृतियों, लोक-परम्पराओं और मान्यताओं को पिछड़ा घोषित कर लगभग अपदस्थ करने की कोशिशें की हैं। लेखक की वक्रोक्ति में निहित मारक व्यंग्य को सत्ता के अनेक छद्म नारों के सन्दर्भ में महसूस किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, आज़ादी मिलने के लगभग साठ वर्षों के बावजूद जीने के लिए ज़रूरी न्यूनतम सुविधाओं संसाधनों की लालसा में बलि चढ़ते ऐसे अनेक क्षेत्र, अंचल हैं और वहाँ का विकट जीवन है जहाँ परिस्थितियाँ ग़ुलामी और पीड़ा, क्षोभ और अतृप्ति के ही हवाले हैं। प्रगति के नाम पर सत्ता-संस्थाओं और उनके कारिन्दों ने शोषण के नये तन्त्र का ही विकास किया है। इस उपन्यास में एक पहाड़ी माँ के करुण जीवन और उनके संघर्षों की मार्मिक आधार कथा में विकास व्यवस्था के विरूप चेहरे पहचाने जा सकते हैं। और पाठक बार-बार कहने को मजबूर हो उठता है—'ओ इजा!' (ओ माँ!)...
कुमाऊँनी हिन्दी में लिखे गये इस आंचलिक उपन्यास ने समय और समाज का विमर्श तो प्रस्तुत किया ही है, भाषा के स्तर पर भी हिन्दी कथा साहित्य को समृद्ध करने की जो प्रभावी पहल की है उसका स्वागत किया जाना चाहिए।
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