Pankhuri Ki Dhal

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"पंखुड़ी की ढाल - इस दूसरे संग्रह में लवली गोस्वामी की कविताओं में भावात्मक ऊष्मा तो बरक़रार है पर उनकी दृष्टि अब कुछ निर्णयात्मक होने लगी है। उसमें आत्मवेध्यता से बचा नहीं गया है और कई तरह की विडम्बनाओं का तीखा अहसास है। कविता को अपना सेतु और शब्द को अपना ईश्वर बताने वाली लवली गोस्वामी का यह नया संग्रह उनके कवि-विकास का एक नया मुक़ाम है। यह दिलचस्प है कि उनके यहाँ सयानी नींद बीच-बीच में 'सपनों का तड़का' लगाती जाती है। - अशोक वाजपेयी ★★★ जिन कवियों की बदौलत आज हिन्दी कविता एक नयी चाल में ढली दिखती है, उनमें लवली गोस्वामी अग्रणी हैं। इन कवियों और कविताओं को पढ़कर लगता है कि हिन्दी कविता में नया भावबोध, बृहत्तर भावलोक और नयी शब्दावली आ चुकी है। यह बिना किसी उद्घोषणा के नये काव्य-संवत् का आरम्भ है। लवली गोस्वामी का यह संग्रह इसकी तस्दीक़ करता है। लवली की कविताओं में न तो खल्वाट वक्तव्य हैं, न कोई गुंजल्क। ये इन्द्रिय सम्मत कविताएँ हैं, समस्त इन्द्रियों के समवेत स्वर में जीवन को अंगीकार करतीं, अप्रत्याशित कविताएँ जिन्हें किसी कोष्ठक में नहीं बाँधा जा सकता। लवली गोस्वामी का यह कविता-संग्रह हिन्दी कविता के वर्तमान आयतन को प्रशस्त करता, अनागत का आभास है। - अरुण कमल "

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