Pensioner
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शिवनारायन ने अपने को आश्रम की दिनचर्या में ढालना शुरू किया। प्रातः जंगल में शौच आदि के पश्चात् कमरे और छत की सफ़ाई-धुलाई, कुएँ से जल खींच कर स्नान, फिर रामायण का अध्ययन। स्वामी जी के शिष्य जो भोजन बनाते थे, उसी में से उनको भी मिल जाता था। सारा दिन अन्य ग्रन्थों का अध्ययन, स्वामी जी से वार्तालाप और अधिकांश समय पेड़ के नीचे बैठ कर आत्म-मन्थन में व्यतीत होता था। सायंकाल शौच आदि के बाद सादा भोजन, उसके बाद लालटेन की रौशनी में पढ़ना-लिखना, फिर रात्रि विश्राम, दो माह इसी प्रकार से बीते। अपने पिछले जीवन के ऐशोआराम, नौकरों की सेवा-टहल, स्वादिष्ट व्यंजन, युवा नारियों के आलिंगन अक्सर उनके स्मृति पटल पर आते रहे, परन्तु उन दैहिक विलासों में लौटने की इच्छा उनके मन में न हुई।