Pinkushan
पिनकुशन -
प्रेमकिरण ग़ज़ल की तमाम बारीकियों को ध्यान में रखते हुए अपनी बात, अपने विचार और अपने अनुभवों को बड़ी सहजता से ग़ज़ल में ढाल रहे हैं। इनकी ग़ज़लें पढ़कर ऐसा महसूस होता है कि इन्हें 'ग़ज़ल' से एक प्रकार का विशेष लगाव है या प्राकृतिक लगाव है और ग़ज़ल उनका ओढ़ना-बिछौना है। प्रेमकिरण ने व्यक्तिगत तौर पर ज़िन्दगी के बहुत सारे उठा-पटक को क़रीब से देखा और भोगा है इसलिए उनके पास खटटे-मीठे अनुभवों का एक बृहत् संसार है। लम्बे अर्से तक पत्रकारिता से जुड़े होने के कारण उनके अनुभवों को और फलने-फूलने और राजनीति के दाँवपेंच को देखने का मौका मिला है। सत्ता की लोलुपता की कोख से जन्मी सामाजिक विषमताओं, बदलती हुई संस्कृति के दुष्परिणामों और आदर्शविहीन प्रगति की होड़ पर उनकी निगाह पैनी है। भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों को क्षत-विक्षत होते देखकर उनका मानवीय हृदय चीत्कार करने लगता है। दरअसल इसी वेदना का प्रतिकार प्रेमकिरण की ग़ज़लें हैं। किरण चूँकि कोमल हृदय और स्वभाव से सरल हैं इसलिए 'ग़ज़ल' उनका स्वाभाविक माध्यम बन गयी है। अर्थात पक्की रोशनाई में अपना नाम छपा देखने का शौक़ या छपास रोग से पीड़ित होकर किरण ग़ज़ल की ओर आकर्षित नहीं हुए बल्कि शेर या ग़ज़ल कहना उनकी मज़बूरी है। मेरे ख़याल में यही मज़बूरी शायर को अच्छा शायर या बड़ा शायर बनाती है। अब यह किरण पर निर्भर करता है कि वह इस मज़बूरी के साथ किस हद तक निर्वाह कर पाते हैं।