Reit Ki Ikk Mutthi

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रेत की इक्क मुट्ठी - 
"पैसे से ही संसार है।... यह संसार की माया है। उस नीली छतरीवाले की माया! बहुत सीधी-सी बात है कि भगवान की माया, भगवान के हम। तो माया और हमारे बीच क्या भेद रहा? समझी मेरी बात! तू अभी बच्ची है। जीवन की गहरी बातें अभी तू नहीं समझ पायेगी। हाँ, हम सब जानते हैं। हमने ज़माना देखा है।" 
इस उपन्यास के नायक अमरसिंह के ये शब्द सुनने-पढ़ने में बहुत साधारण लग सकते हैं, लेकिन 'ज़माना देख चुका' यह आदमी अपनी इसी मानसिकता के कारण जीवन की अमूल्य उपलब्धियों को नकारते हुए ऐसे बीहड़ में सब कुछ खो देता है जो केवल मनुष्य को प्राप्त है। ज़िन्दगी उसकी मुट्ठी से रेत की तरह गिरती चली जाती है।... दरअसल इस उपन्यास का नायक अपनी इस मानसिकता का दण्ड भोगता है।
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित पंजाबी के वरिष्ठ कथाकार गुरदयाल सिंह के इस लघु उपन्यास में इसी भयावह मानसिकता के मार्मिक शब्द-चित्र हैं, जो हमारे समय और सामाजिक जीवन का क्रूर और त्रासद यथार्थ है।

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