Samandar Aaj Bhi Chup Hai
समन्दर आज भी चुप है -
आम जीवन से जुड़ी अशोक 'मिज़ाज' की ग़ज़लों में देश की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, आध्यात्मिक, प्रेम और सौन्दर्य चेतना के सुर साफ़-तौर पर देखे जा सकते हैं। 'समन्दर आज भी चुप है' में संकलित ग़ज़लों के रुझान इस ओर इशारा करते हैं। संग्रह की तमाम ग़ज़लें अपनी आक्रामकता, तीक्ष्णता, सटीकता आदि गुणों से सामाजिकों का ध्यान शीघ्र लक्ष्य की ओर आकर्षित कर लेती हैं। ख़ास बात यह है कि इनकी ग़ज़लों के शब्द प्रयोग में पूरी मितव्ययिता को ध्यान में रखा गया है। बिम्बों की एक अलग दुनिया है। छन्दों में नूतनता एवं स्वच्छन्दता है। हिन्दी ग़ज़ल की समकालीन धारा में चाहे यथार्थ वर्णन हो या सामाजिक चित्रण, चाहे प्रेम का अभिव्यंजन हो अथवा दार्शनिक विवेचन, अशोक 'मिज़ाज' सबसे भिन्न रहे हैं।—भूमिका से...