Shareephan (Manto Ab Tak-10)
मण्टो की 'शरीफ़न' ही एक ऐसी कहानी है जो कहानी नहीं एक जीता जागता दुःस्वप्न मालूम होती है। इस कहानी को पढ़ कर मुझे लगा कि मण्टो जो दो लड़कियों का बाप था, फ़सादों के दौरान किस तकलीफ़ में से गुज़रा होगा। एक आम आदमी जब निजी हादसे का शिकार होता है तो किस तरह समझ सोच को भुला कर दरिन्दगी पर उतर आता है और इसीलिए कहानी के अन्त में कासिम के प्रति गुस्सा नहीं आता, वरन उसकी अपार दयनीयता और विवशता के प्रति दुख और दया ही उपजती है। यही कहानी, जो एक साम्प्रदायिक लेखक के हाथों लिखी जा कर लोगों के जज़्बातों को भड़का सकती थी, मण्टो के हाथों से निकल कर बिलकुल उलटा असर डालती है-वह पाठकों को दहशत की ऐसी सर्द हालत में छोड़ जाती है कि वे संजीदा हो कर इस सारी स्थिति पर गौर करने के लिए प्रेरित होते हैं, जब आदमी पशु से बेहतर नहीं होता।