Tum Mujhse Fir Milna

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तुम मुझसे फिर मिलना - 
निवेदिता छोटे-छोटे विषयों को उठाती है और समय की पड़ताल करते हुए आगे बढ़ती है। उनका बचपन छोटानागपुर (झारखण्ड) में बीता है तभी उनकी कविताओं में बसंत, जंगल, राँची, पलाश, आदिवासी शब्द बार-बार आते हैं। उनकी कविता का संसार लगता है हमारा अपना संसार ही है जहाँ हम हैं, हमारी बातें हैं। निवेदिता रचनारत होते हुए एक पीड़ा निरन्तर महसूस करती है जिसे अचानक बैचेन हो, वो कह उठती है—'बसंत कोई नया नहीं है/मैंने तो हर क्षण याद किया/प्रेम सबके हिस्से में आता है' और उनकी कविताओं में वो परिलक्षित भी होता है। मगर प्रेम की कविता सहज मन से लिखी गयी हैं कोमल-सी ये कविताएँ मन को भाती हैं और इनकी कविताओं से गुज़रते हुए मुझे महसूस होता है कि समकालीन हिन्दी कविता में निश्चय ही ये अपना दख़ल देंगी और ख़ूब पढ़ी भी जायेंगी ये मेरा यकीं भी है और विश्वास भी।—नरेन्द्र पुंडरीक

 

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