Yahi Hai Rasta
यही है रास्ता -
चन्दन और प्रतिमा के प्यार की अत्यन्त संवेदनशील कहानी - छात्र जीवन में वे एक-दूसरे के जितने निकट आये सामाजिक उपेक्षाओं ने उन्हें उतना ही दूर फेंक दिया.. चन्दन विवश हो गया दस्यु जीवन बिताने के लिए... बढ़ती चली आयी अन्यायों और अपराधों की जकड़ती श्रृंखलाएँ... जाति, धन, धर्म और क़ानूनों का दुरूपयोग.. भ्रष्टाचार और समाज-द्रोह के काले कारनामे... पनपते गये अनेक दस्यु दल... आवेश में आकर अपराध कर डालने वाले लोगों के लिए खुलते गये बन्दूक़ और जंगल के रास्ते.. पुलिस की काली किताबों में दर्ज होते गये वे लोग.. उनकी मुक्ति का या उनसे मुक्ति का कोई रास्ता?
लेखक ने ग्यारह वर्षों तक सर्वोदय आन्दोलन में वैचारिक तौर पर भाग लिया, आचार्य विनोबा जी के कार्यक्रमों का समर्थन किया.. "सर्वोदय के गीत" काव्य लिखा.. प्रथम दस्यु समर्पण के समय उरंगम नदी से चम्बल तक के शिविरों में विनोबा जी के साथ रहा.. उससे पूर्व लिखी जा चुकी थी चन्दन और प्रतिमा की यह कहानी, जो दस्यु समर्पण की गाँधीवादी विचारधारा के प्रत्यक्ष घटित होते दर्शन से परिपुष्ट होकर चिन्तनशील पाठकों के हाथों में हैं.. चन्दन एक ऐसा पात्र जो बाहर से विषैले नागों से घिरा रहा, किन्तु भीतर भीतर बदलता गया शीतल चन्दन में दस्यु से संन्यासी.. और समर्पण का सूत्रधार.. जो मिलता है हिमाच्छादित अमरनाथ के मार्ग में शेषनाग नदी के किनारे संन्यासिनी प्रतिमा से.. हिन्दी का दस्यु समस्या पर प्रथम आंचलिक उपन्यास, जिसकी कथा राजस्थान और उत्तर प्रदेश के बीहड़ों, कगारों, घाटियों से घूमती हुई भारत की सांस्कृतिक ऊँचाइयों तक पाठक को ले जाती है.. आरंभ से अंत तक अन्यंत रोचक, मार्मिक, उद्बोधक... चिन्तन की परिधि को उदात्त बनाकर यथार्थ और आदर्श की नई दृष्टियों के सहारे उत्तरोत्तर ऊँचा उठाती है.. मार्मिक व्यंजना से भरी इसकी सुबोध भाषा, जीवन को एक नया संबोध देने वाले शिल्प से रची गयी है... निश्चय ही चन्दन और प्रतिमा के उदात्त प्रेम की लुकती-छिपती तस्वीरें आपके मानस और मनीषा को वर्षों तक झकझोरती रहेंगी।
Publication | Vani Prakashan |
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