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Bharat : Ek swapn
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"लगभग 27 करोड़ वर्ष पहले पृथ्वी का महाभूखण्ड 'पैंजिया' जिसमें सभी महाद्वीप समाये हुए थे। तब न कहीं अमेरिका था, भारतवर्ष, न ही अफ़्रीका। आज जिस भारत को उपमहाद्वीप कहते हैं, वह लगभग 8 करोड़, 80 लाख साल पहले गोंडवाना महाभूमि से अलग हुआ भूखण्ड है, जो आज भी 20 सेंटीमीटर प्रति सेकंड की गति से पृथ्वी की उत्तर-पूर्वी दिशा में खिसक रहा है। क़बीले खड़े हुए, बस्तियाँ अस्तित्व में आयीं, श्रम आधारित सामाजिक संरचना ने आकार लिया और मानव ने अभिनव सूर्य की अद्भुत आभा में खेती-किसानी की सभ्यताएँ आरम्भ कीं। मण्डियाँ सजने लगीं, श्रम में काम आने वाली लौह वस्तुएँ भारी पैमाने पर निर्मित हुईं। चाक पर बनने वाले मृदभाण्डों के अवशेष गवाह हैं, प्राचीन भारतीय मनुष्य की श्रमशक्ति के। सिन्धुघाटी की सभ्यता में पूजा और हवन के प्रमाण मिलते हैं। वे अग्निपूजक थे और पीपल वृक्ष के प्रति भी आस्थावान। प्रकृति उनके जीवन को बचाये रखने के लिए बिछी हुई थी, इसलिए वे प्रकृति के वैविध्य के भक्त रहे हों, स्वाभाविक है। आस्थापरक कर्मकाण्डों की बेहिसाब शुरुआत उत्तर वैदिक काल में हुई, इसके अनेकशः प्रमाण वैदिक साहित्य में उपलब्ध होते हैं। भौगोलिक भारतवर्ष तो आज भी लगभग वही है, जैसा करोड़ों वर्ष पहले गोंडवाना लैंड से अलग होकर उत्तरी गोलार्द्ध की ओर बढ़ना शुरू किया था, किन्तु बदलाव आया है, तो उसकी सतह पर जी रहे मनुष्यों में। बाँट डाला खुद को हज़ारों जातियों में, विभाजित कर लिया खुद को अनेकानेक धर्मों में, खो डाली अपनी एकाश्मक पहचान जिसे हम 'पृथ्वीपुत्र' कहते। आज हिन्दू धर्म के अनेक पन्थ हैं। बौद्ध, जैन, वैष्णव, शैव, ईसाई, इस्लाम धर्म खण्ड-खण्ड होकर हीनयान-महायान, श्वेताम्बर-दिगम्बर, शिया-सुन्नी में विभाजित हो चुके हैं। आपस में वैमनस्य की धार इतनी तेज़ कि उसकी मार का असर सदियों तक ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा। धर्म के नाम पर दुनिया के देशों का इतिहास युद्धों से रंगा पड़ा है, जबकि दुनिया के धर्म मनुष्य की 'ईश्वरवादी कल्पना की खोज' हैं। इसके मूल आधार हैं- आस्था, भक्ति, समर्पण और अप्रश्न। तथ्य, प्रमाण, तर्क, यथार्थ और सन्देह जो मानव मस्तिष्क के प्राणतत्व हैं-धर्म की दुनिया से बहिष्कृत कर दिये गये।
राजनीति ठीक धर्म की तरह मानव निर्मित व्यवस्था है। धार्मिक बनने के पहले मनुष्य राजनीतिक नहीं था, किन्तु धर्मों के बीच वर्चस्व के संघर्ष ने राजनीतिक चालाकी को जन्म दिया । उसका एक और कारण पृथ्वी के विशाल भूभाग पर सत्ता कायम रखना था। वह पृथ्वी, जिसे आज तक न सिकन्दर हासिल कर पाया, न कलिंग विजेता अशोक और न ही 18वीं से 20वीं सदी तक धरती पर अपना यूनियन जैक लहराने वाली ब्रिटिश हुकूमत। वक़्त है-भारत को वैश्विक निगाहों से देखने का, वक़्त है - भारतवर्ष को पीछे मुड़कर मीमांसा करने का, वक़्त है-भारतवर्ष को नवपरिभाषित करने का। हमें चाहिए एक अचूक वैज्ञानिक दृष्टि, हमें चाहिए नवोन्मेष का राग, हमें चाहिए एक उद्दाम संकल्प -भारतवर्ष के भविष्य को परिवर्तित करने का। इसके लिए बहुआयामी मौलिक वैचारिकी की ज़रूरत है, जो तभी सम्भव होगा, जब हम अपनी-अपनी धारणाओं की जकड़न, कर्मकाण्डी धर्मों के मायाजाल और जातीय पहचान की कट्टरता से मुक्त होंगे। इक्कीसवीं सदी आज हर भारतीय के सामने एक अपूर्व अवसर है, कि भारतवर्ष को कैसे, किस तरीके से एक ऐसे देश के रूप में तब्दील किया जाये जो विश्व के आर्थिक, वैज्ञानिक, सामाजिक और ज्ञानात्मक विकास में अपनी निर्णायक भूमिका निभा सके। प्रस्तुत पुस्तक— ‘भारत : एक स्वप्न’ भारत के प्रति इसी भूमिका की एकनिष्ठ तैयारी है।
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Bharat : Ek swapn
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