Kashmir Vadi Ki Asli Kahani
स्वतन्त्रता से पूर्व भारत में पाँच सौ से अधिक ऐसी रियासतें थीं, जिन पर राजा-महाराजा, नवाब और निज़ाम इत्यादि का राज्य था। बँटवारे से पहले अंग्रेज़ों ने इन रियासतों को अपना भविष्य स्वयं तय करने की छूट दी थी कि वह अपनी इच्छानुसार भारत या पाकिस्तान का भाग बन सकती थीं। जो रियासतें देश के बीचों-बीच स्थित थीं, उनके पास तो एक ही विकल्प था कि वह दो नये देशों में से उसी का भाग बनें जिसकी सरहदों से वह घिरी हों, पर कश्मीर और जूनागढ़ जैसी कुछ रियासतें सरहद पर होने के कारण दोनों में से किसी एक देश का हिस्सा होने के बारे में सोच-विचार कर सकती थीं। क्षेत्र के अनुसार भारत की सबसे बड़ी रियासत होने और उसके नैसर्गिक सौन्दर्य के लिए सारी दुनिया में विख्यात जम्मू-कश्मीर रियासत पर पाकिस्तान की नज़र शुरू से ही थी। वहाँ पर मुसलमानों का बहुमत होने के कारण क़ायदे-आज़म जिन्ना उसे अपनी जेब में ही रखा समझते थे, किन्तु जम्मू-कश्मीर के महाराजा हिन्दू थे और उन्हें इस बात का पूरा अनुमान था कि पाकिस्तान में विलय होने के बाद उनका अपना और उनकी हिन्दू प्रजा का क्या हश्र होगा। ठकुरसुहाती कहने वाले कुछ सलाहकारों की सलाह से तो महाराजा हरि सिंह कुछ समय के लिए अपने एक स्वतन्त्र देश होने के सपने भी देखते रहे, किन्तु माउंटबेटन की बातचीत से इस बात का स्पष्टीकरण हो गया कि दो नये देशों के बीचों-बीच स्थित होने के कारण उनके स्वतन्त्र रहने की कोई सम्भावना नहीं है।