Nirvasan (Urmila Shirish)
निर्वासन -
उर्मिला शिरीष की कहानियों में स्त्री और वृद्धों के प्रति गहरी संवेदना और जागरूकता दिखाई देती है। अमूमन घर के हाशिये पर जो लोग पड़े रहते हैं, उनके मन की व्यथा और भावनाओं को व्यक्त करने में उर्मिला सिद्धहस्त हैं। वे परिवार के जनतन्त्र की हिमायती हैं और स्त्रियों की आज़ादी की मुखर पक्षधर भी। उनकी कहानियों की स्त्रियाँ अपनी राह तलाशते हुए कई बार समाज की रूढ़ियाँ लाँघती हैं। नयी पीढ़ी का व्यक्तित्व उनकी रचनाओं में साफ नजर आता है ।
उर्मिला जी की कहानियों में समाज का बदलता हुआ चेहरा और आज की समस्याओं का विश्लेषण है । इसलिए ये अपने समय की प्रासंगिक कहानियाँ हैं। जटिल स्थितियों को सहजता से पेश करते हुए भी उनकी गम्भीरता आद्यन्त बनी रहती है और पाठक समस्याओं की आँच को बखूबी महसूस करते हैं। उर्मिला की कहानी खत्म होने के बाद भी किसी अच्छी कविता की तरह उसका एहसास बना रहता है ।
समाज को समग्रता से देखने के कारण उर्मिला शिरीष उन नारीवादी महिला कथाकारों से अलग हैं जो समाज को खाँचों में बाँटकर देखने में यकीन करती हैं। उर्मिला जी की खूबी यही है कि वे संवेदना को टुकड़ों में नहीं बाँटती। उनकी कहानियों में समाज के विकास की चिन्ता नजर आती है
अपने नयेपन को लिये हुए ये कहानियाँ, आशा है, पाठकों को बहुत रुचिकर लगेंगी।