Samrat Ashok
नाटककार ने सम्राट अशोक को जिन रूप-रंग और छवियों में उकेरा है कि वह सुदूर अतीत का अशोक न हो कर, आज के किसी भी राजनीतिज्ञ, प्रशासक, अथवा शासक का सहज ही प्रतिबिम्ब जान पड़ने लगता है- इस दृष्टि से नाटक सर्वथा, सार्थक, समकालिक और सर्वकालीन रहेगा। देवेन्द्र राज अंकुर पूर्व निदेशक, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नयी दिल्ली ‘सम्राट अशोक’- अशोक के जीवन की घटनाओं का मात्रा संकलन नहीं है। नाटककार ने अशोक के माध्यम से जीवन की निरर्थकता और असंगतता को रेखांकित किया है, जो अन्ततः सार्वभौतिक सत्य है, और जिसने सिद्धार्थ नामक एक राजकुमार को बुद्ध बनाया था। इस परिप्रेक्ष्य में नाटक साहित्यगत मूल्यों से भरपूर एक उत्कृष्ट रचना है, जो हर दृष्टि से सफल नाट्य कृति है। डॉ. सूर्य प्रसाद दीक्षित पूर्व अध्यक्ष, हिन्दी विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय