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तिलिस्म में पुरुषों के मनोविज्ञान की उसकी समग्रता में दर्शाया गया है। कठोर पिता और पीडोफ़ाइल - शिक्षक से तंग आकर घर से भाग निकलने और दोहरा जीवन जीने को अभिशप्त बालक उपेन्द्र को कसाई सलीम भाई की दुकान में मांस काटना मंजूर है, किन्तु घर लौटना नहीं । भंगी कॉलोनी के एक अनाथ और हमउम्र लड़के अली के संग से वह सड़कों पर सुरक्षित रातें गुज़ारने के गुर सीखता है।संयोग से, सलीम भाई की बीवी उसे गोद ले लेती हैं; जिनसे भरपूर प्रेम मिलने के बावजूद वह आत्मविश्वास की कमी और सेक्स सम्बन्धी कई समस्याओं में उलझकर अवसादग्रस्त हो जाता है, जिससे निजात दिलवाने के लिए उसके अब्बू-अम्मी उसे लन्दन भेजते हैं। लन्दन में उपेन्द्र वहाँ की चकाचौंध, गरीबी, शोषण, समृद्ध परिवारों की विलासिता, अविश्वास, षड्यन्त्र, दोस्ती और दुश्मनी से जूझता है।

कई परिवेशों और देशों में फैली हुई यह रोचक कथा महाकाव्यात्मक उपन्यास है, जिसमें जटिल सम्बन्धों में छटपटाता उपेन्द्र दो लैवेंडर विवाहों के बावजूद अप्रसन्न है; दूसरी पत्नी की वजह से जेल और प्रेमिका की वजह से ड्रग्स के चक्करों से वचता- बचाता वह अम्मी के पास लौट आता है लेकिन हवाई अड्डे पर उतरते ही उसे अहसास हो जाता है कि दिल्ली उसका अन्तिम पड़ाव नहीं हैयह उपन्यास अपने समय से आगे की कथा कहता है।- प्रो. राजेश कुमार(वरिष्ठ साहित्यकार)

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दिव्या माथुर (Divya Mathur)

दिव्या माथुर, एफ़.आर.एस.ए. वातायन-यूके की संस्थापकऔर रॉयल सोसाइटी ऑफ़ आर्ट्स की फेलो, बहु-पुरस्कृत लेखिका व सम्पादक हैं। उन्हें 'पद्मभूषण डॉ. मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार', 'वनमाली कथा सम्मान', आर्ट्स काउंसिल ऑफ़ इंग्लैंड का 'आर्ट्स अचीवर', और हाल ही में नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर एवं विश्व हिन्दी सचिवालय में मॉरीशस के प्रधान मन्त्री द्वारा सम्मान मिला है। उन्होंने सात कहानी-संग्रह, आठ कविता-संग्रह, दो उपन्यास तिलिस्म, शाम भर बातें, बाल उपन्यास बिन्नी बुआ का बिल्ला और सात सम्पादित संग्रह प्रकाशित किये हैं। उनकी रचनाओं पर 25 शोध हुए हैं। दिव्या जी ने नेहरू केन्द्र-लन्दन में वरिष्ठ अधिकारी के रूप में कार्य किया और कई साहित्यिक मंचों पर सम्मानित हुईं। उनकी कहानी 'साँप सीढ़ी' पर दूरदर्शन ने टेलीफ़िल्म बनायी है।

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